मस्तूरी । ग्राम पंचायत में निर्वाचित महिला सरपंचों का कार्यभार उनके पति या देवर, अन्य रिश्तेदार संभाल रहे हैं। यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। क्योंकि, मस्तूरी ब्लाक के पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को इस बार 50 प्रतिशत आरक्षण दे दिया है।इससे इन संस्थाओं में निर्वाचित महिलाओं का प्रतिशत बढ़ कर 60% के भी पार चला गया है। महिलाओं को यह आरक्षण देने का उद्देश्य उनका राजनीतिक सशक्तीकरण करना था, पर इसके बजाय उनके पति या परिवार के पुरुष सदस्यों का सशक्तीकरण हो रहा है। जब सब काम पंचायतों के पति या उनके रिस्तेदार ही देखते हैं तो फिर क्या मतलब है महिलाओं को आरक्षण देने का? मस्तूरी ब्लाक के अंतर्गत आगामी त्रिस्तरीय चुनाव में 131 ग्राम पंचायतों जिसमें 50 प्रतिशत पर महिला आरक्षण घोषित हुआ है। यह हाल पिछले ग्राम पंचायत चुनाव में भी था। जिस पर आज भी ग्राम पंचायत में सरपंचपति या प्रतिनिधि कहलाते पति ही हैं,ऐसे ही हाल अभी देखने को मिला है।ब्लाक मस्तूरी के ग्राम पंचायतों खोंधरा में महिला सरपंच मिना कुर्रे के होते हुए भी इनके देवर प्रमोद कुर्रे को ही पंचायतों के कामकाज को संभालते आसानी से देखा जा सकता है। अपने आप को सरपंच बताते हुए गांव और शासकीय कार्यालयों में अपने मुंह से अपने ही प्रशंसा करने में पीछे नहीं हो रहे हैं। और जबरीया पंचायत के कार्यों में अपना हस्तक्षेप दिखा रहे हैं।

गौरतलब है कि पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण मिलने के बाद आरक्षित सीट पर पुरुष चुनाव नहीं लड़ सकते, इसलिए वे अक्सर अपनी पत्नी व माता व भाभी ,बहन को चुनाव में खड़ा कर देते हैं, और जीतने के बाद अपना दबदबा कायम रखते हैं। वे अपनी पत्नी, माता ,भाभी,बहन का मोहरे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। ग्राम पंचायतों के चुनाव प्रचार के दौरान कई मामलों में पाया गया है कि पोस्टरों और पर्चों में महिला.सरपंच प्रत्याशी के साथ-साथ पति की तस्वीर भी लगी होती है। जब गांव के लोगों से पूछा गया कि उनका सरपंच प्रत्याशी कौन है तो उन्होंने जवाब में महिला प्रत्याशी के बजाय उनके पति का नाम लिया जाता है। विजयी प्रत्याशी का नाम पूछने पर भी उनके पति का ही नाम लिया जाता है। कई निर्वाचित महिलाएं घूंघट ओढ़कर पंचायत की बैठक में भाग लेती हैं। ऐसे में उनसे समाज-सुधार और ग्राम विकास की कैसे अपेक्षा की जा सकती है?पिछले कुछ सालों में केंद्र और राज्य सरकारों ने कई सरकारी विकास व कल्याणकारी योजनाएं जैसे- मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, विधवा पेंशन योजना लागू की है, जिन पर ग्राम पंचायतों के सहयोग से अमल किया जाता है। इन योजनाओं के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों से बड़े पैमाने पर निधियां मिलती हैं।

सरपंच अपने विवेक के आधार पर 5.7 लाख रुपए के विकास कार्य करवा सकता है। धन की इस आवक पर सरपंच पति या उनके प्रतिनिधि कर रहे रिस्तेदारो की गिद्ध दृष्टि रहती है, और वे ग्राम सचिव या अन्य अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाले-गबन कर बड़ी राशि की बंदरबांट कर लेते हैं।सरपंच पति राज की संस्कृति की रोकथाम के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम महिलाओं के प्रति सोच को बदलना है। यह काम बालिका शिक्षा पर जोर देने और समाज सुधार आंदोलन के जरिए संभव है। इसके अलावा एक और उपयोगी सुझाव यह हो सकता है कि उन ग्राम पंचायतों में सचिव पद पर महिला की तैनाती की जाए, जहां महिला सरपंच हैं।इससे महिला सरपंच अधिक सहज होकर काम कर सकेंगी। महिला सरपंचों की शैक्षणिक योग्यता बढ़ाने का कोई उपाय किया जाना भी जरूरी है। अंगूठा लगाकर तस्दीक करने वाली महिला सरपंचों से पंचायतों के जटिल वित्तीय कामकाज में औसत कुशलता की भी अपेक्षा नहीं की जा सकती। जब तक निर्वाचित महिला सरपंच खुद स्वतंत्र तरीके से पंचायतों की जिम्मेदारी नहीं संभालतीं, तब तक महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण का सपना साकार नहीं हो सकता।

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